भारतीय प्रणाली के अंतर्गत आने वाले
सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर मोहरों द्वारा सत्यापन किया जाता है .इस तरह से कई
ऐसे तत्व जो निकाय से सम्बन्धित नहीं है , वे कुछ अनौपचारिक माध्यमों के द्वारा
इनके सत्यापन में भागीदारी निभाते है.
जैसा की प्रायः देखा गया है की कुछ
लोग फर्जीवाड़ा अर्थात जालसाजी द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रशस्ति पत्रों , नोटरी , आवेदन पत्रों इत्यादि पर
सत्यापन कराते है और इनके माध्यम सिर्फ अनौपचारिक होते है . भारत सरकार द्वारा गठित
विभिन्न आयोग जैसे प्रादेशिक परिवहन कार्यालय , तहसील, कचहरी , ब्लाक प्रमुख
कार्यालय को गौर से देखे तो सत्यापन का अधिकतम प्रतिशत कार्य (जो गैरकानूनी होता
है) यही से प्रारम्भ हो जाता है. अतः हमें आगे के विभागों में झाँकने की आवश्यकता नहीं
है . यद्यपि इनकी मोहरे वास्तविक स्वरूप की इतनी हूबहू नकल होती है कि भेद करना
बड़ा ही दुर्लभ हो जाता है .चूंकि इन मोहरों की कोई पंजीकरण संख्या नहीं होती है इस
कारण से कोई भी साधारण व्यक्ति इसे आसानी से बनवा लेता है .
वर्तमान सरकार का आगाज भारतीय गणराज्य
को विश्व के शीर्ष पे पहुँचाना है. परन्तु क्या यह संभव है की चलनी से पानी को
टिकाया जा सके ? इसलिए निकाय में भारी परिवर्तन की आवश्यकता है .
अतः भ्रष्टाचार जैसी बीमारी का इलाज
करने के लिए सरकार को पुख्ता कदम उठाने की जरूरत है . विभिन्न प्रणाली जैसे
न्यायिक , प्रशासनिक आदि में मोहरों के अक्षर प्रकार तथा आकार निर्धारित करने के
साथ पंजीकरण भी आवश्यक कर देना चाहिए . बिना पंजीकृत मोहरों को अवैध घोषित करके ,
पंजीकृत मोहरों को वैधानिक रूप से प्रयोग में लाना ज्यादा लाभकारी होगा . जैसा की
बाँट एवम् माप विभाग में हर वर्ष प्रत्येक बाँट की जांच की जाती है उसी प्रकार से
इन मोहरों के लिए अगर उपरोक्त बातें मान ली जाये तो जालसाजी , भ्रष्टाचारी जैसे
अपमानित शब्दों से सरकार के बाशिंदों को मुक्ति मिल सकेगी .
No comments:
Post a Comment