सुनो तुम्हे सुनाता हूँ एक किस्सा;
कभी एक बार हुआ ऐसा,
एक बगुले ने देखा हंसिनी को;
मंत्रमुग्ध हो गया देखकर उसको,
आते थे दोनों एक ही सरोवर में;
बगुला हो गया दीवाना अनजाने में,
रोज था देखता उसे एक छोर से;
जैसे बाँधी गयी हो जैसे उसकी आँखे डोर से,
सरोवर में रोज आके बेचैन होता था;
दिल की धडकनों को यूँ ही छिपाता था,
कुछ महीनो में बगुले ने सोचा कुछ ऐसा;
क बता दे उसे मन का हाल था जैसा,
पर वक्त नही था उसके साथ;
हंसिनी ने छोड़ दिया सरोवर का साथ,
गुम हो गयी न जाने कहाँ पे;
बगुला भी सहम गया की खोजे उसे कहाँ पे,
उसने कर दिया था अपनी आँखों को लाल;
था उसे पुराने दिनों पे मलाल,
फिर उसने बहुत किया प्रयत्न;
तब भी नही मिला उसे चैतन्य,
किस्मत ने फिर पलटी मारी;
उसने सुधारी गलती सारी,
अब पता तो चल गया हंसिनी का उसे;
हाल हंसिनी का की वो है कैसे,
धीरे-धीरे उसने शुरू की बातें;
फिर से आ गयी चांदनी रातें,
कह दिया उससे की है प्यार है उसे हंसिनी से;
पर कर दिया इन्कार हंसिनी ने की वो नही करेगी फालतू लोग से,
पर बगुला फिर भी करता था प्यार उससे;
तभी तो करता था बात उससे,
स्वभाव था उसका अलग ऐसा;
की हंसिनी को लगता था कष्ट के जैसा,
फिर हंसिनी ने कहा की मैं नही होऊँगी तेरी;
क्यू की तू नही है जाती का मेरी,
क्या कहे बगुला की जाती नही होती कोई की;
ये तो साजिश है बनाने की नये परिवार की,
हंसिनी ने कहा की हद हो गयी है अब;
तू निकल जा जिंदगी से मेरी अब,
किस्मत का खेल है कितना न्यारा;
बगुला घूमता है आवारा,
अब भी इंतज़ार है हंसिनी का;
उसे नही ख्याल है जाती का,
कहता है की एक बार आजा वो;
नही तोड़ेगा अब दिल को,
पार कर लेगा वो जिंदगी कैसे कैसे;
जैसे चला रहा हो पंख ऐसे तैसे,
बगुला था राज़ी अब भी हर शर्तो पे;
कह दे हाँ तो बैठा ले उसे पलको पे.........
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