Tuesday, 7 May 2013

My worthless efforts- गुनाह-ऐ-इश्क


क्यूँ वो यादों का साया साथ रहता है?
क्यूँ वो ही शख्स हमेशा पास रहता है?
क्यूँ ये दूरियाँ हो जाती है ?
क्यूँ ये सांसे ठहर जाती है?
क्यूँ टूट के बिखर जातें हैं सपने ?
क्यूँ ये पराये हो जातें हैं अपने?
अगर ये इश्क गुनाह है तो मुझे ,
कुबूल है क़ुबूल है क़ुबूल है

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